Thursday, March 15

कभी सोचता हूँ
समेट दूँ
तुम्हारी दास्ताँ कागचों पे
अपने शब्दों के सहारे
पर बैठता हूँ जब
लिखने तुम्हें
तो रुक जाता हूँ
अब तुम ही बताओ
सत्ताईस सालों की ख़ुशी
मुझसे भला
नज़्मों में बयां हो पायेगी कभी !

Wednesday, March 14

अब तो वक़्त भी पूछता है बेझिझक,
कब हुए हम बेइंतेहा से बेसबब !

Sunday, March 11

इतने सलीके से,
जर्रे को आसमां बना देते हो !
तुम क्या खुदा हो?
जो जाहिल को लम्हों में,
इंसान बना देते हो !

Monday, March 5

बरस भी अब बीतने को आया है
पर खुदा कसम बिना तुझे याद किये
ये अवशेष कभी सो नहीं पाया है | 
खुश रहता हूँ खुली आँखों से मैं 
क्यूंकि आंसुओं को भी है पता 
मेरे पत्थर दिल की हकीकत | 
काफी अच्छी समझ हो चुकी है 
बरखुरदार अब अपने  दरम्यान 
तभी तो वो सैलाब बन बस सपनों में आते हैं 
और हम भी 'बेफिकर, बेतरतीत 'जिए' जाते हैं | 



Tharoor in a pseudo intellectual role till 2019

Mr Tharoor is a learned person...represented India in the UN ...lost the race to be its secretary general not because he was less competen...