Tuesday, June 12

 

1.

मैं चुप हरदम हमेशा,
किसे सुनाता अपनी व्यथा,
डर के बादल, शोषण का कुहरा
बचपन मेरा था ऐसे गुजरा ।

अपना था वो पूरा अपना,
है अबतक इस बात का रोना
कहता मुझको अपना खिलौना,
पर खेल-खेल में उजाड़ दिया मेरा बचपन सलोना ।।


2.

बाल-मन मेरा घबराया सहमा सा
दर्द के साये में हरवक्त डूबा सा
शीशों सी चुभती उसके आने की आहटें
और आहटों में कैद तड़प मेरे मन की 
उस तड़प का है आजीवन दीदार किया
दर्द में मैंने दर्द से हरदम इकरार किया ।। 



सन्दर्भ: ये दो कवितायेँ बाल-शोषण जैसे गंभीर मुद्दे पर कुछ कहना चाहती हैं। अगर यें लोगों को इस समस्या के बारे में थोडा भी सोचने पर मजबूर कर पायीं तो मेरा प्रयास सफल होगा ।

Tuesday, June 5

'स्त्री'

स्त्री  कहलाती दुनिया में  त्याग  की मूर्ति,
अफ़सोस किसी  ने न सोचा,  क्या है इनकी सामाजिक स्थिति
कभी माँ तो कभी बेटी, कभी बहन तो कभी बीवी
 बन अनगिनत फर्जों को अदा ये करतीं  ।
 
पुरुषों की भावहीन दुनिया में करुणामयी प्रेम-रस  घोलती,
अनन्त अत्याचारों के बावजूद उफ़ तक न करती
कभी पति तो कभी पुत्र  सेवा में अपना सर्वेस्व उड़ेलती स्त्री ,
नि:स्वार्थ त्याग को जीवन धर्म मानती ।

क्यों निष्ठुर समाज न कभी समझ पाया  इनकी वृति
कि है अधिकार समान इनका भी, उतना ही  ही प्रेम नियति
'जगवालों संभल जाओ'  है  देती चेतावनी ये धरती
वरना विमुख रहोगे जीवनभर, न होगी होगी कभी तुम्हारे प्रेमाकांक्षाओं की पूर्ति ।।

 'शशांक'

सन्दर्भ: यह कविता 'सत्यमेव-जयते' नामक धारावाहिक से प्रेरित होकर लिखी गयी है । आज समाज को जरुरत है कि यह अपनी सोच का दायरा विस्तृत करे तथा स्त्रियों के प्रति उदारवादी नज़रिया अपनाए  ।

Tharoor in a pseudo intellectual role till 2019

Mr Tharoor is a learned person...represented India in the UN ...lost the race to be its secretary general not because he was less competen...